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क्या आपकी सांसें बिकाऊ हैं? हैदराबाद के जंगल पर मंडरा रहा खतरा!

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क्या आपने कभी सोचा कि जिस ऑक्सीजन के लिए हम तरसते हैं, उसे बचाने की जंग में हम कितने पीछे हैं? हैदराबाद का 400 एकड़ का हरा-भरा जंगल, जिसे शहर का 'ग्रीन लंग्स' कहा जाता है, अब खतरे में है। रातों-रात बुलडोजर्स की लाइन लगी है और इसे उजाड़ने का प्लान तैयार हो चुका है। आइए, इस चौंकाने वाली खबर को समझें और जानें कि आखिर माजरा क्या है।  


हैदराबाद का जंगल: शहर की सांसें  

एक अनोखा इकोसिस्टम  

हैदराबाद यूनिवर्सिटी के पास बसा ये 400 एकड़ का जंगल कोई साधारण जगह नहीं है। यहां 455 से ज्यादा जानवरों और पौधों की प्रजातियां पाई जाती हैं। मोर की कूक, हिरन की छलांग और पाइथन की फुंफकार - ये सब इस जंगल की शान हैं। चार छोटी झीलें इसे और खास बनाती हैं। ये इलाका अपने आप में एक सेल्फ-सस्टेनिंग इकोसिस्टम है, यानी ये खुद को संभाल सकता है। लेकिन अब इसकी सांसें थमने वाली हैं।  


क्यों है ये इतना जरूरी?  

क्लाइमेट चेंज की मार से तो आप वाकिफ हैं ही। गर्मी हर साल नया रिकॉर्ड बना रही है। ऐसे में शहरों के ये ग्रीन एरिया ही हमें राहत देते हैं। स्टडीज बताती हैं कि एक हेक्टेयर जंगल हर साल 20 टन से ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड सोख सकता है। तो सोचिए, 400 एकड़ का ये जंगल हैदराबाद के लिए कितना बड़ा ढाल है!  


सरकार का प्लान: ऑक्सीजन या ऑक्शन?  

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जंगल की कीमत 10-15 हजार करोड़?  

तेलंगाना की कांग्रेस सरकार इस जंगल को प्राइवेट आईटी कंपनियों को बेचने की तैयारी में है। प्लान है कि यहां एक चमचमाता आईटी पार्क बनेगा और इससे 10-15 हजार करोड़ रुपये की कमाई होगी। लेकिन सवाल ये है - क्या पैसों के लिए हम अपनी सांसों को दांव पर लगा सकते हैं? अगर ये जंगल कट गया, तो हैदराबाद की हवा और जहरीली हो जाएगी।  


डेवलपमेंट का बहाना सच में जरूरी है?  

सरकार कह रही है कि ये डेवलपमेंट के लिए जरूरी है। लेकिन क्या आईटी पार्क के लिए कोई बंजर जमीन नहीं मिल सकती? शहर के बाहर खाली पड़ी जमीन पर भी तो ऐसा प्रोजेक्ट बन सकता है। जंगल काटना ही आखिरी रास्ता क्यों है?  


स्टूडेंट्स की जंग: #ऑक्सीजन_नॉट_ऑक्शन  


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प्रोटेस्ट की शुरुआत  

हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी (HCU) के स्टूडेंट्स इस डिस्ट्रक्शन के खिलाफ खड़े हो गए हैं। 31 मार्च से उन्होंने अनिश्चितकालीन प्रोटेस्ट शुरू किया। उनके बैनर पर लिखा है - #ऑक्सीजन_नॉट_ऑक्शन। ये नारा सिर्फ एक स्लोगन नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सवाल है।  


पुलिस की बेरहमी  

लेकिन इस आवाज को दबाने के लिए पुलिस ने लाठी चार्ज कर दिया। स्टूडेंट्स पर बेरहमी से हमला हुआ। क्या जंगल बचाने की मांग करना गुनाह है? ये सवाल हर उस शख्स को परेशान कर रहा है, जो पर्यावरण की कीमत समझता है।  


राहुल गांधी से सवाल: चुप्पी क्यों?  

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राहुल गांधी अक्सर बीजेपी को पर्यावरण के मुद्दे पर घेरते हैं। मुंबई का आरे फॉरेस्ट हो या निकोबार का डिस्ट्रक्शन, उनकी आवाज गूंजती है। लेकिन अब जब उनकी अपनी पार्टी की सरकार तेलंगाना में ऐसा कर रही है, तो वो चुप क्यों हैं? लोग कह रहे हैं - कांग्रेस और बीजेपी में फर्क क्या, जब बात जंगल और ऑक्सीजन की हो? राहुल जी, आपने कहा था, "तेलंगाना को जरूरत पड़े तो मैं हाजिर हो जाऊंगा।" तो अब समय है, बोलिए!  


क्या करें हम?  

ये सिर्फ हैदराबाद की बात नहीं है। हर शहर में जंगल और ग्रीन स्पेस खत्म हो रहे हैं। अगर हम अभी नहीं जागे, तो आने वाली पीढ़ियां हमें माफ नहीं करेंगी। सरकार से सवाल पूछें, सोशल मीडिया पर #ऑक्सीजन_नॉट_ऑक्शन को सपोर्ट करें, और अपने आसपास के ग्रीन एरिया को बचाने की कोशिश करें।  


आपकी राय क्या है?  

क्या आपको लगता है कि जंगल बचाना जरूरी है या डेवलपमेंट के लिए इसे कुर्बान कर देना चाहिए? नीचे कमेंट में अपनी बात बताएं। इस ब्लॉग को शेयर करें, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इस मुद्दे को समझें। और हां, ऐसे ही जरूरी अपडेट्स के लिए सब्सक्राइब करना न भूलें। जंगल बचाओ, सांसें बचाओ!  


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